एक शराबी की सूक्तियां
कृष्ण कल्पित, जो कि हिंदी में खूब पढे जाने वाले कवि हैं, इन दिनों अपने एक काम से खासी सुर्खियों में हैं. एक शराबी की सूक्तियां ही वो काम है. इस छोटी सी कितबिया को वे मुफ्त बांट रहे हैं. अपरिचय के बावजूद मैंने उनसे आग्रह किया, और उन्होंने बडी विनम्रता से कितबिया भिजवा दी. मैं यहां उनकी पूरी की पूरी पेशकश पेश कर रहा हूं : अविनाश
अब मेरी आत्मा पर यह बोझ असह्य है. यह 'भारी पत्थर' अब इस 'नातवां' से नहीं उठता. लगभग दो साल होने को आये, जब इस नामुराद को, काली स्याही से लिखे इन पन्नों का बंडल जयपुर के एक सस्ते शराबघर में पडा मिला था. इसके बाद पटना, कोलकाता और फिर दिल्ली. हर जगह एक अज्ञात काली छाया मेरे वजूद पर छायी रही. इस दौरान एक अजीब सा अवसाद भरा नशा मुझ पर लगातार तारी रहा है.
मैं इसके लिए किसी ओझा, तांत्रिक या कापालिक के पास नहीं गया. मैंने खुद यह 'भूत' उतारने का फैसला किया और इस 'कितबिया' को प्रकाशित कराने का जोखिम उठाया. शायद इसी तरह इन 'शापित' पंक्तियों से मेरा छुटकारा संभव हो. यह राजकमल चौधरी का नहीं- मेरा 'मुक्तिप्रसंग' है. इति.
कृष्ण कल्पित, 30 अक्टूबर, 2006, जयपुर
तेजसिंह जोधा के लिए या भागीरथ सिंह 'भाग्य' किंवा अशोक शास्त्री, स्वर्गीया राजिन्दर बोहरा, विनय श्रीकर अथवा मधुकर सिंह के लिए; थिएटर रोड, कोलकाता की सागरिका घोष के साथ.
मस्जिद ऐसी भरी भरी कब है
मैकदा इक जहान है गोया.
- मीर तकी मीर
"मैं तो अपनी आत्मा को भी शराब में घोलकर पी गया हूं, बाबा! मैं कहीं का नहीं रहा; मैं तबाह हो गया- मेरा किस्सा खत्म हो गया, बाबा! लोग किसलिए इस दुनिया में जीते हैं?"
"लोग दुनिया को बेहतर बनाने के लिए जीते हैं, प्यारे. उदाहरण के लिए एक से एक बढई हैं दुनिया में, सभी दो कौडी के... फिर एक दिन उनमें ऐसा बढई पैदा होता है, जिसकी बराबरी का कोई बढई दुनिया में पहले हुआ ही नहीं था- सबसे बढ-चढ कर, जिसका कोई जवाब नहीं... और वह बढइयों के सारे काम को एक निखार दे देता है और बढइयों का धंधा एक ही छलांग में बीस साल आगे पहुंच जाता है... दूसरों के मामले में भी ऐसा ही होता है... लुहारों में, मोचियों में, किसानों में... यहां तक कि शराबियों में भी!"
मक्सिम गोर्की
नाटक 'तलछट' से
पूर्व कथन
यह जीर्णशीर्ण पांडुलिपि एक सस्ते शराबघर में पडी हुई थी- जिस गोल करके धागे में बांधा गया था. शायद इसे वह अधेड आदमी छोड गया था, जो थोडा लंगडाकर चलता था. उत्सुकतावश ही मैंने इस पांडुलिपि को खोल कर देखा. पांडुलिपि क्या थी- पंद्रह बीस पन्नों का एक बंडल था. शराबघर के नीम अंधेरे में अक्षर दिखाई नहीं पड रहे थे- हालांकि काली स्याही से उन्हें लिखा गया था. हस्तलिपि भी उलझन भरी थी. शराबघर के बाहर आकर मैंने लैंपपोस्ट की रोशनी में उन पन्नों को पढा तो दंग रह गया. यह कोई साल भर पहले की बात है, मैंने उसके बाद कई बार इन फटे पुराने पन्नों के अज्ञात रचयिता को ढूंढने की कोशिश की; लेकिन नाकाम रहा. हारकर मैं उस जीर्णशीर्ण पांडुलिपि में से चुनिंदा पंक्तियों/सूक्तियों/कविताओं को अपने नाम से प्रकाशित करा रहा हूं- इस शपथ के साथ कि ये मेरी लिखी हुई नहीं है और इस आशा के साथ कि ये आवारा पंक्तियां आगामी मानवता के किसी काम आ सकेंगी. कृ.क.
एक
शराबी के लिए
हर रात
आखिरी रात होती है.
शराबी की सुबह
हर रोज
एक नयी सुबह.
दो
हर शराबी कहता है
दूसरे शराबी से
कम पिया करो.
शराबी शराबी के
गले मिलकर रोता है.
शराबी शराबी के
गले मिलकर हंसता है.
तीन
शराबी कहता है
बात सुनो
ऐसी बात
फिर कहीं नहीं सुनोगे.
चार
शराब होगी जहां
वहां आसपास ही होगा
चना चबैना.
पांच
शराबी कवि ने कहा
इस बार पुरस्कृत होगा
वह कवि
जो शराब नहीं पीता.
छह
समकालीन कवियों में
सबसे अच्छा शराबी कौन है?
समकालीन शराबियों में
सबसे अच्छा कवि कौन है?
सात
भिखारी को भीख मिल ही जाती है
शराबी को शराब.
आठ
मैं तुमसे प्यार करता हूं
शराबी कहता है
रास्ते में हर मिलने वाले से.
नौ
शराबी कहता है
मैं शराबी नहीं हूं
शराबी कहता है
मुझसे बेहतर कौन गा सकता है?
दस
शराबी की बात का विश्वास मत करना.
शराबी की बात का विश्वास करना.
शराबी से बुरा कौन है?
शराबी से अच्छा कौन है?
ग्यारह
शराबी
अपनी प्रिय किताब के पीछे
छिपाता है शराब.
बारह
एक शराबी पहचान लेता है
दूसरे शराबी को
जैसे एक भिखारी दूसरे को.
तेरह
थोडा सा पानी
थोडा सा पानी
सारे संसार के शराबियों के बीच
यह गाना प्रचलित है.
चौदह
स्त्रियां शराबी नहीं हो सकतीं
शराबी को ही
होना पडता है स्त्री.
पंद्रह
सिर्फ शराब पीने से
कोई शराबी नहीं हो जाता.
सोलह
कौन सी शराब
शराबी कभी नहीं पूछता
सत्रह
आजकल मिलते हैं
सजे-धजे शराबी
कम दिखाई पडते हैं सच्चे शराबी.
अठारह
शराबी से कुछ कहना बेकार.
शराबी को कुछ समझाना बेकार.
उन्नीस
सभी सरहदों से परे
धर्म, मजहब, रंग, भेद और भाषाओं के पार
शराबी एक विश्व नागरिक है.
बीस
कभी सुना है
किसी शराबी को अगवा किया गया?
कभी सुना है
किसी शराबी को छुडवाया गया फिरौती देकर?
इक्कीस
सबने लिक्खा - वली दक्कनी
सबने लिक्खे - मृतकों के बयान
किसी ने नहीं लिखा
वहां पर थी शराब पीने पर पाबंदी
शराबियों से वहां
अपराधियों का सा सलूक किया जाता था.
बाईस
शराबी के पास
नहीं पायी जाती शराब
हत्यारे के पास जैसे
नहीं पाया जाता हथियार.
तेईस
शराबी पैदाइशी होता है
उसे बनाया नहीं जा सकता.
चौबीस
एक महफिल में
कभी नहीं होते
दो शराबी.
पच्चीस
शराबी नहीं पूछता किसी से
रास्ता शराबघर का.
छब्बीस
महाकवि की तरह
महाशराबी कुछ नहीं होता.
सत्ताईस
पुरस्कृत शराबियों के पास
बचे हैं सिर्फ पीतल के तमगे
उपेक्षित शराबियों के पास
अभी भी बची है
थोडी सी शराब.
अट्ठाईस
दिल्ली के शराबी को
कौतुक से देखता है
पूरब का शराबी
पूरब के शराबी को
कुछ नहीं समझता
धुर पूरब का शराबी.
उनतीस
शराबी से नहीं लिया जा सकता
बच्चों को डराने का काम.
तीस
कविता का भी बन चला है अब
छोटा मोटा बाजार
सिर्फ शराब पीना ही बचा है अब
स्वांतः सुखय कर्म.
इकतीस
बाजार कुछ नही बिगाड पाया
शराबियों का
हलांकि कई बार पेश किये गये
प्लास्टिक के शराबी.
बत्तीस
आजकल कवि भी होने लगे हैं सफल
आज तक नहीं सुना गया
कभी हुआ है कोई सफल शराबी.
तैंतीस
कवियों की छोडिए
कुत्ते भी जहां पा जाते हैं पदक
कभी नहीं सुना गया
किसि शराबी को पुरस्कृत किया गया.
चौंतीस
पटना का शराबी कहना ठीक नहीं
कंकडबाग के शराबी से
कितना अलग और अलबेला है
इनकमटैक्स गोलंबर का शराबी.
पैंतीस
कभी प्रकाश में नहीं आता शराबी
अंधेरे में धीरे धीरे
विलीन हो जाता है.
छत्तीस
शराबी के बच्चे
अक्सर शराब नहीं पीते.
सैंतीस
स्त्रियां सुलाती हैं
डगमगाते शराबियों को
स्त्रियों ने बचा रखी है
शराबियों की कौम
अडतीस
स्त्रियों के आंसुओं से जो बनती है
उस शराब का
कोई जवाब नहीं.
उनचालीस
कभी नहीं देखा गया
किसी शराबी को
भूख से मरते हुए.
चालीस
यात्राएं टालता रहता है शराबी
पता नही वहां पर
कैसी शराब मिले
कैसे शराबी!
इकतालीस
धर्म अगर अफीम है
तो विधर्म है शराब
बयालीस
समरसता कहां होगी
शराबघर के अलावा?
शराबी के अलावा
कौन होगा सच्चा धर्मनिरपेक्ष
तैंतालीस
शराब ने मिटा दिये
राजशाही, रजवाडे और सामंत
शराब चाहती है दुनिया में
सच्चा लोकतंत्र
चवालीस
कुछ जी रहे हैं पीकर
कुछ बगैर पिये.
कुछ मर गये पीकर
कुछ बगैर पिये.
पैंतालीस
नहीं पीने में जो मजा है
वह पीने में नहीं
यह जाना हमने पीकर.
छियालीस
इंतजार में ही
पी गये चार प्याले
तुम आ जाते
तो क्या होता?
सैंतालीस
तुम नहीं आये
मैं डूब रहा हूं शराब में
तुम आ गये तो
शराब में रोशनी आ गयी.
अडतालीस
तुम कहां हो
मैं शराब पीता हूं
तुम आ जाओ
मैं शराब पीता हूं.
उनचास
तुम्हारे आने पर
मुझे बताया गया प्रेमी
तुम्हारे जाने के बाद
मुझे शराबी कहा गया.
पचास
देवताओ, जाओ
मुझे शराब पीने दो
अप्सराओ, जाओ
मुझे करने दो प्रेम.
इक्यावन
प्रेम की तरह
शराब पीने का
नहीं होता कोई समय
यह समयातीत है.
बावन
शराब सेतु है
मनुष्य और कविता के बीच.
सेतु है शराब
श्रमिक और कुदाल के बीच.
तिरेपन
सोचता है जुलाहा
काश!
करघे पर बुनी जा सकती शराब.
चव्वन
कुम्हार सोचता है
काश!
चाक पर रची जा सकती शराब.
पचपन
सोचता है बढई
काश!
आरी से चीरी जा सकती शराब.
छप्पन
स्वप्न है शराब!
जहालत के विरुद्ध
गरीबी के विरुद्ध
शोषण के विरुद्ध
अन्याय के विरुद्ध
मुक्ति का स्वप्न है शराब!
क्षेपक
पांडुलिपि की हस्तलिपि भले उलझन भरी हो, लेकिन उसे कलात्मक कहा जा सकता है. इसे स्याही झरने वाली कलम से जतन से लिखा गया था. अक्षरों की लचक, मात्राओं की फुनगियों और बिंदु, अर्धविराम से जान पडता है कि यह हस्तलिपि स्वअर्जित है. पूर्णविराम का स्थापत्य तो बेजोड है- कहीं कोई भूल नहीं. सीधा सपाट, रीढ की तरह तना हुआ पूर्णविराम. अर्धविराम ऐसा, जैसा थोडा फुदक कर आगे बढा जा सके.
रचयिता का नाम कहीं नहीं पाया गया. डेगाना नामक कस्बे का जिक्र दो-तीन स्थलों पर आता है जिसके आगे जिला नागौर, राजस्थान लिखा गया है. संभवतः वह यहां का रहने वाला हो. डेगाना स्थित 'विश्वकर्मा आरा मशीन' का जिक्र एक स्थल पर आता है- जिसके बाद खेजडे और शीशम की लकडियों के भाव लिखे हुए हैं. बढईगिरी के काम आने वाले राछों (औजारों) यथा आरी, बसूला, हथौडी आदि का उल्लेख भी एक जगह पर है. हो सकता है वह खुद बढाई हो या इस धंधे से जुडा कोई कारीगर. पांडुलिपि के बीच में 'महालक्ष्मी प्रिंटिंग प्रेस, डीडवाना' की एक परची भी फंसी हुई थी, जिस पर कंपोजिंग, छपाई और बाईंडिंग का 4375 (कुल चार हजार तीन सौ पचहत्तर) रुपये का हिसाब लिखा हुआ है. यह संभवतः इस पांडुलिपि के छपने का अनुमानित व्यय था- जिससे जान पडता है कि इस 'कितबिया' को प्रकाशित कराने की इच्छा इसके रचयिता की रही होगी.
रचयिता की औपचारिक शिक्षा दीक्षा का अनुमान पांडुलिपि से लगाना मिश्किल है - यह तो लगभग पक्का है कि वह बीए एमए डिग्रीधारी नहीं था. यह जरूर हैरान करने वाली बात है कि पांडुलिपि में अमीर खुसरो, कबीर, मीर, सूर, तुलसी, गालिब, मीरा, निराला, प्रेमचंद, शरतचंद्र, मंटो, फिराक, फैज, मुक्तिबोध, भुवनेश़वर, मजाज, उग्र, नागार्जुन, बच्चन, नासिर, राजकमल, शैलेंद्र, ऋत्विक घटक, रामकिंकर, सिद्धेश्वरी देवी की पंक्तियां बीच-बीच में गुंथी हुई हैं. यह वाकई विलक्षण और हैरान करने वाली बात है. काल के थपेडों से जूझती हुई, होड लेती हुई कुछ पंक्तियां किस तरह रेगिस्तान के एक 'कामगार' की अंतरआत्मा पर बरसती हैं और वहीं बस जाती हैं- जैसे नदियां हमारे पडोस में बसती हैं.
कृ.क.
पटना, 13 फरवरी 2005
बसंत पंचमी
सत्तावन
कहीं भी पी जा सकती है शराब
खेतों में खलिहानों मे
क्षछार में या उपांत में
छत पर या सीढियों के झुटपुटे में
रेल के डिब्बे में
या फिर किसी लैंपपोस्ट की
झरती हुई रोशनी में
कहीं भी पी जा सकती है शराब.
अठावन
कलवारी में पीने के बाद
मृत्यु और जीवन से परे
वह अविस्मरणीय नृत्य
'ठगिनी क्यों नैना झमकावै'
कफन बेच कर अगर
घीसू और माधो नहीं पीते शराब
तो यह मनुष्यता वंचित रह जाती
एक कालजयी कृति से.
उनसठ
देवदास कैसे बनता देवदास
अगर शराब न होती.
तब पारो का क्या होता
क्या होता चंद्रमुखी का
क्या होता
रेलगाडी की तरह
थरथराती आत्मा का?
साठ
उन नीमबाज आंखों में
सारी मस्ती
किसकी सी होती
अगर शराब न होती!
आंखों में दम
किसके लिए होता
अगर न होता सागर-ओ-मीना?
इकसठ
अगर न होती शराब
वाइज का क्या होता
क्या होता शेख सहब का
किस कामा लगते धर्मोपदेशक?
बासठ
पीने दे पीने दे
मस्जिद में बैठ कर
कलवारियां
और नालियां तो
खुदाओं से अटी पडी हैं.
तिरेसठ
'न उनसे मिले न मय पी है'
'ऐसे भी दिन आएंगे'
काल पडेगा मुल्क में
किसान करेंगे आत्महत्याएं
और खेत सूख जाएंगे.
चौंसठ
'घन घमंड नभ गरजत घोरा
प्रियाहीन मन डरपत मोरा'
ऐसी भयानक रात
पीता हूं शराब
पीता हूं शराब!
पैंसठ
'हमन को होशियारी क्या
हमन हैं इश्क मस्ताना'
डगमगाता है श़राबी
डगमगाती है कायनात!
छियासठ
'अपनी सी कर दीनी रे
तो से नैना मिलाय के'
तोसे तोसे तोसे
नैना मिलाय के
'चल खुसरो घर आपने
रैन भई चहुं देस'
सडसठ
'गोरी सोई सेज पर
मुख पर डारे केस'
'उदासी बाल खोले सो रही है'
अब बारह का बजर पडा है
मेरा दिल तो कांप उठा है.
जैसे तैसे जिंदा हूं
सच बतलाना तू कैसा है.
सबने लिक्खे माफीनामे.
हमने तेरा नाम लिखा है.
अडसठ
'वो हाथ सो गये हैं
सिरहाने धरे धरे'
अरे उठ अरे चल
शराबी थामता है दूसरे शराबी को.
उनहत्तर
'आये थे हंसते खेलते'
'यह अंतिम बेहोशी
अंतिम साकी
अंतिम प्याला है'
मार्च के फुटपाथों पर
पत्ते फडफडा रहे हैं
पेडों से झड रही है
एक स्त्री के सुबकने की आवाज.
सत्तर
'दो अंखियां मत खाइयो
पिया मिलन की आस'
आस उजडती नहीं है
उजडती नहीं है आस
बडबडाता है शराबी.
इकहत्तर
कितना पानी बह गया
नदियों में
'तो फिर लहू क्या है?'
लहू में घुलती है शराब
जैसे शराब घुलती है शराब में.
बहत्तर
'धिक् जीवन
सहता ही आया विरोध'
'कन्ये मैं पिता निरर्थक था'
तरल गरल बाबा ने कहा
'कई दिनों तक चूल्हा रोया
चक्की रही उदास'
शराबी को याद आयी कविता
कई दिनों के बाद
तिहत्तर
राजकमल बढाते हैं चिलम
उग्र थाम लेते हैं.
मणिकर्णिका घाट पर
रात के तीसरे पहर
भुवनेश्वर गुफ्तगू करते हैं मजाज से.
मुक्तिबोध सुलगाते हैं बीडी
एक शराबी
मांगता है उनसे माचिस.
'डासत ही गयी बीत निशा सब'.
चौहत्तर
'मौसे छल
किए जाय हाय रे हाय
हाय रे हाय'
'चलो सुहाना भरम तो टूटा'
अबे चल
लकडी के बुरादे
घर चल!
सडक का हुस्न है शराबी!
पचहत्तर
'सब आदमी बराबर हैं
यह बात कही होगी
किसी सस्ते शराबघर में
एक बदसूरत शराबी ने
किसी सुंदर शराबी को देख कर.'
यह कार्ल मार्क्स के जन्म के
बहुत पहले की बात होगी!
छिहत्तर
मगध में होगी
विचारों की कमी
शराबघर तो विचारों से अटे पडे हैं.
सतहत्तर
शराबघर ही होगी शायद
आलोचना की
जन्मभूमि!
पहला आलोचक कोई शराबी रहा होगा!
अठहत्तर
रूप और अंतर्वस्तु
शिल्प और कथ्य
प्याला और शराब
विलग होते ही
बिखर जाएगी कलाकृति!
उनासी
तुझे हम वली समझते
अगर न पीते शराब.
मनुष्य बने रहने के लिए ही
पी जाती है शराब!
अस्सी
'होगा किसी दीवार के
साये के तले मीर'
अभी नहीं गिरेगी यह दीवार
तुम उसकी ओट में जाकर
एक स्त्री को चूम सकते हो
शराबी दीवार को चूम रहा है
चांदनी रात में भीगता हुआ.
इक्यासी
'घुटुकन चलत
रेणु तनु मंडित'
रेत पर लोट रहा है रेगिस्तान का शराबी
'रेत है रेत बिखर जाएगी'
किधर जाएगी
रात की यह आखिरी बस?
बयासी
भंग की बूटी
गांजे की कली
खप्पर की शराब
कासी तीन लोक से न्यारी
और शराबी
तीन लोक का वासी!
तिरासी
लैंप पोस्ट से झरती है रोशनी
हारमोनियम से धूल
और शराबी से झरता है
अवसाद.
चौरासी
टेलीविजन के परदे पर
बाहुबलियों की खबरें सुनाती हैं
बाहुबलाएं!
टकटकी लगाये देखता है शराबी
विडंबना का यह विलक्षण रूपक
भंते! एक प्याला और.
पिचासी
गंगा के किनारे
उल्टी पडी नाव पर लेटा शराबी
कौतुक से देखता है
महात्मा गांधी सेतु को
ऐसे भी लोग हैं दुनिया में
'जो नदी को स्पर्श किये बगैर
करते हैं नदियों को पार'
और उछाल कर सिक्का
नदियों को खरीदने की कोशिश करते हैं!
छियासी
तानाशाह डरता है
शराबियों से
तानाशाह डरता है
कवियों से
वह डरता है बच्चों से नदियों से
एक तिनका भी डराता है उसे
प्यालों की खनखनाहट भर से
कांप जाता है तानाशाह.
सतासी
क्या मैं ईश्वर से
बात कर सकता हूं
शराबी मिलाता है नंबर
अंधेरे में टिमटिमाती है रोशनी
अभी आप कतार में हैं
कृपया थोडी देर बाद डायल करें.
अठासी
'एहि ठैयां मोतिया
हिरायल हो रामा...'
इसी जगह टपका था लहू
इसी जगह बरसेगी शराब
इसी जगह
सृष्टि का सर्वाधिक उत्तेजक ठुमका
सर्वाधिक मार्मिक कजरी
इसी जगह इसी जगह
नवासी
'अंतर्राष्ट्रीय सिर्फ
हवाई जहाज होते हैं
कलाकार की जडें होती हैं'
और उन जडों को
सींचना पडता है शराब से!
नब्बे
जिस पेड के नीचे बैठ कर
ऋत्विक घटक
कुरते की जेब से निकालते हैं अद्-धा
वहीं बन जाता है अड्डा
वहीं हो जाता है
बोधिवृक्ष!
इकरानवे
सबसे बडा अफसानानिगार
सबसे बडा शाइर
सबसे बडा चित्रकार
औरा सबसे बडा सिनेमाकार
अभी भी जुटते हैं
कभी कभी
किसी उजडे हुए शराबघर में!
बानवे
हमें भी लटका दिया जाएगा
किसी रोज फांसी के तख्ते पर
धकेल दिया जाएगा
सलाखों के पीछे
हमारी भी फाकामस्ती
रंग लाएगी एक दिन!
तिरानवे
(मंटो की स्मृति में)
कब्रगाह में सोया है शराबी
सोचता हुआ
वह बडा शराबी है
या खुदा!
चौरानवे
ऐसी ही होती है मृत्यु
जैसे उतरता है नशा
ऐसा ही होता है जीवन
जैसे चढती है शराब.
पिचानवे
'हां, मैंने दिया है दिल
इस सारे किस्से में
ये चांद भी है शामिल.'
आंखों में रहे सपना
मैं रात को आऊंगा
दरवाजा खुला रखना.
चांदनी में चिनाब
होठों पर माहिए
हाथों में शराब
और क्या चाहिए!
छियानवे
रिक्शों पर प्यार था
गाडियों में व्यभिचार
जितनी बडी गाडी थी
उतना बडा था व्यभिचार
रात में घर लौटता शराबी
खंडित करता है एक विखंडित वाक्य
वलय में खोजता हुआ लय.
सतानवे
घर टूट गया
रीत गया प्याला
धूसर गंगा के किनारे
प्रस्फुटित हुआ अग्नि का पुष्प
सांझ के अवसान में हुआ
देह का अवसान
षरती से कम हो गया एक शराबी!
अठानवे
निपट भोर में
'किसी सूतक का वस्त्र पहने'
वह योवा शराबी
कल के दाह संस्कार की
राख कुरेद रहा है
क्या मिलेगा उसे
टूटा हुआ प्याला फेंका हुआ सिक्का
या पहले तोड की अजस्र धार!
आखिर जुस्तजू क्या है?
कृष्ण कल्पित का जन्म 30 अक्टूबर, 1957 को रेगिस्तान के एक कस्बे फतेहपुर शेखावटी में हुआ. हिंदी और टीवी के बहुत ही संजीदा नाम है. अब तक कविता की तीन किताबें और मीडिया पर समीक्षा की एक किताब छप चुकी है. ऋत्विक घटक के जीवन पर एक पेड की कहानी नाम से एक वृत्तचित्र भी बना चुके हैं. पर एक शराबी की सूक्तियों का वाकई जवाब नहीं. नेट से जुडी हमारी दुनिया के दोस्त इन सूक्तियों का इस्तेमाल कभी भी कहीं भी कर सकते हैं. पर इसके लिए इजाजत जरूरी है. कृष्ण कल्पित जी का पता हैः 311-ए, उना अपार्टमेंट, पटपडगंज, इंद्रप्रस्थ विस्तार, दिल्ली 110092. उनका फोन नंबर है : 09968295303.
Friday, January 12, 2007
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61 comments:
पढ़ते पढ़ते ओवरडोज हो गया और हैंगओवर, लगता है सारा जीवन रहेगा.
इतनी बढ़िया रचना इंटरनेट पर प्रस्तुत करने हेतु साधुवाद!
नशा जीने और पागल होने के
बीच का विकल्प है
बहुतों के लिए
एनेस्थिसिया है
दर्दनिवारक है
और इसके साइड इफ़ेक्ट्स नहीं होते
क्योंकि...
डायरेक्ट इफ़ेक्ट होता है.
एक बेहतरीन संकलन है.
अनामदास
कल्पितजी , क्या ग़ज़ब लिखा है।
डा सत्यनारायण की सोहबत में आपके साथ जयपुर में बिताए लम्हे याद आ गए। अद्भुत रचना है। बधाई।
इन पंक्तियों ने शराब को , शराबी को, नशे को , फाकामस्ती को तार दिया और कई चेहरों को बेनकाब कर दिया।
अजित वडनेरकर
dobaara padhna padega. kuchh bhi kehne se pehle. filhaal itna hi ke kuchh vichitr zaroor hai.
kalpitji ki suktiyan pad kar nidhish tyagi ji ka aabhar vyakt karta hoon jin ki vajah se ek anoothi duniyan main jane ka moka mila. kalpitji aap ko bhi saduvad. dedsh nirmohi
Bachchan ne sharabghar ke saundarya ko rubaio me utara tha, kalpit ne suktiyo me sharabi ki aatma ko piroya hai.
शराब ही शराब छिड़क दी आपने इंटरनेट पर.
एक पैग लें:
"सिर्फ शराब पीने से कोई शराबी नहीं हो जाता."
तो फ़िर शराबी किसे कहेंगे?
patrakaar sochta hai
kash !
shayahi ban jati sharab,
kagaj par utari jati sharab.
patrakaar sochta hai
kash !
shayahi ban jati sharab,
kagaj par utari jati sharab.
patrakaar sochta hai
kash !
shayahi ban jati sharab,
kagaj par utar aati sharab.
नशा शराब में होता तो झूमती बोतल...
लगता है इस शराबी ने शराब को सिर्फ़ पिया ही नहीं जिया भी है। मैं इस व्यक्ति की साहित्य और दूसरे कला-माध्यमों में पैठ देखकर आतंकित हूँ। साधुवाद आपको कि आपने ऐसी रचना इंटरनेट पर उपलब्ध कराई।
बस इतना कहूंगा कि पढ़ कर टुल हो गया। इससे ज़्यादा नहीं कह सकता क्योंकि टुल हो गया हूं।--संतोष
काश करघे पर बुनी जा सकती शराब, काश चाक पर रची जा सकती शराब...ये वो शराब नहीं जिसे बहुत सारे लोग हर रोज़ पीते हैं, ये कुछ और है।
poori padh nahi paya... lekin aaj hi ye tay kiya ki home loan ki EMI kI tarah hi sahi, jaroori kisto me padhunga. duniyadari aur manvata ko is se behtar shabdo me nahi dhala ja sakta. main sharabi hoon bhi aur nahi bhi... asal me kis type ka hooni uski talash yaha ki ja sakti hai.
avinash bhai aap kam ki cheez hain. Deepak choubey
ये इसमे शराबके नशे की नहीं, उसके नशे की सोच की खुमारी ज़्यादा है. लाजवाब है
बेहतरीन सूक्तियां ! रवि जी तरह हमें भी ओवरडोज़्ड फील हो रहा है !
pahali line me hi galib mil gaya
Itane kam shabdon men itana kuchh kah diya gaya hai ki tareef ke liye shabd kam padh rahe hain aisa lagata hai ki kavi ka jaam chum lun
virendra jain
Marhaba ! Khuda khair kare...i would love to make an audio c.d. reciting these verses.
Kalpitji,
Aap jaise sharaabi jab tak hain,duniya chalti rahegi.
Agar sharaabi mar gaya to duniya ka kya hoga ?
Many thanks for posting such a wonderful piece.
Please allow me to comment after hang over. Aaj kuchch jyada ho gayi hai. hickck..........
Sharabi
99. kaun hun main ?
isee prashan ka jawab dundane to gaya tha maikhane.
raat teen baje sair karke laut raha tha to Awaragardi mein vyast policewalon se jhagda ho gaya,
voh nirapradh hee mujhe le aye thane.
कल्पित सर,
पहचाना.... मुझे... मेरी तस्वीर को....
'सब आदमी बराबर हैं
यह बात कही होगी
किसी सस्ते शराबघर में
एक बदसूरत शराबी ने
किसी सुंदर शराबी को देख कर.'
यह कार्ल मार्क्स के जन्म के
बहुत पहले की बात होगी!
कमाल का लिखा है... सर, कसम से सारी जिंदगी आपकी दी हुई किताब संभल कर रखूँगा... वक़्त-बेवक्त में रास्ते चलते भी कोई-कोई पेज पढ़ लेता हूँ... एक ही टोपिक पर इतना उम्दा.... बेहतरीन.....
एक शराबी की सूक्तियां
बहुत बहुत अच्छा है
इतनी अच्छी लेख के लिए
धन्यवाद
भाई वाह !! दुनिया को मयखाना बना देने वाले .. .. इक खुदा का .. इक तेरा जवाब नहीं .. शराबी इजाजतों के मोहताज़ नहीं होते .. .. .. जब जी में आयेगा पियेंगे.. .. .. जब जी में आए़गा पिलाएँगे .. .. .. तुम कौन हो भाई
...इजाजत वाले
कहाँ छुपी थी यह "अराजक परम्पराओं" की ऑरिजनल कविता....
कि -
"शराब ने मिटा दिये
राजशाही, रजवाडे और सामंत
शराब चाहती है दुनिया में
सच्चा लोकतंत्र"
और-
" 'सब आदमी बराबर हैं
यह बात कही होगी
किसी सस्ते शराबघर में
एक बदसूरत शराबी ने
किसी सुंदर शराबी को देख कर.'
यह कार्ल मार्क्स के जन्म के
बहुत पहले की बात होगी!"
अभिभूत हूँ. अभी फोन लगाता हूँ कल्पित जी को.
nice
पढ़ते पढ़ते नशा हो गया............बेहतरीन..
jeeo prabhu......kya kavi ho aap!....bahut khoob.
@सागर,
शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया....
तुम न बताते ये राह तो इस अलौकिक "मधुशाला" से वंचित रह जाता मैं तो।
वाह .........................
ये तो पूरा शोध ग्रंथ है
"काश! करघे पर बुनी जा सकती शराब"
कृष्ण कांत जी का ईमेल आईडी होता तो संपर्क करने में आसानी होती .
जिसने भी ये लिखा है वो चाहे शराबी ही क्यों न था मगर जो लिखा है वो बेहतरीन है लाजवाब है भावनावों की सुन्दर अभिब्यक्ति है
Sukriya Sagar yaha pahunchaane ke liye.....dar hai .....iske baad kahin rasta na bhul jaaun....
realy...ek behtarin...sankalan....
bahut hi sunder collection hai---
jai baba banaras--
shaandaar...
बहुत दिनों बाद लग रहा है की शराब पीने और शराब नहीं पीने से फ़र्क पड़ने लगता है... "सबसे बड़े अफ़सानानिगार, सबसे बड़े शायर, सबसे बड़े चित्रकार और सबसे बड़े सिनेमाकार, अभी भी जुटते हैं, कभी कभी, किसी उजड़े हुए शराबघर मे..."
बहोत उम्दा..बहोत बढ़िया..। शुक्रिया।
kitna parhoo or kitna chorr doo ek bar fir se lot kar aana hoga na ............
कमबख्त ऐसे वक़्त पर आना हुआ इधर..जब छोड़ने की सोच रहे थे....
अब कहाँ छूटेगी...?
जो नहीं पीते हैं मय, उनको बहाने लाजिमी..
कब जरूरत पीने वाले को बहाने की हुई...?
कमबख्त ऐसे वक़्त पर आना हुआ इधर..जब छोड़ने की सोच रहे थे....
अब कहाँ छूटेगी...?
जो नहीं पीते हैं मय, उनको बहाने लाजिमी..
कब जरूरत पीने वाले को बहाने की हुई...?
एक शिक्षक के बारे में सुना था कि वे भौतिकी के एक अध्याय से पूरी भौतिकी पढ़ा सकते हैं…यहाँ शराब को लेकर इतनी चीजें पढ़ रहा हूँ कि सारा इतिहास-भूगोल-साहित्य सब आ गया है…लाजवाब!…कमाल कर दिया कवि ने।
maan gaye ustad! kamaal hai! agar ye likhne wala BA - MA nahi hai to saare BA-MA WALE SHARM SE CHAR PEG JYADA PEEKE JIYEN!
behad khoob ...Shraab aur sharaabi par kafi baareeki se likha hai...aur umda
Jo hasaye wo dost, jo rulaye wo pyar,
jo jhuke wo dost, jo jhukaye wo pyar,
jo manaye wo dost, jo sataye wo pyar,
phir bhi dosti chhod k log kyu karte h pyar.
ओवरडोज़्ड फील हो रहा है
Girl-Na chedo ladkiyo ko paap hoga, Kal tu bhi kisi hasina ka baap hoga. Wah Wah.. Boy-khuda kare teri baat sachi ho, Jo mujhe papa kahe wo teri bachi ho.
Source http://www.openplus.in/jokes/shero-shayeri.php
ये कौन आ गया रुखे-खंदाँ लिये हुये
आरिज़ पे रंगो-नूर का तूफ़ाँ लिये हुये
बीमार के क़रीब बसद-शाने-एहतियात
दिलदारि-ए-नसीम-ए-बहाराँ लिये हुये
रुख़सार पर लतीफ़ सी इक मौज़े-सरखुशी
लब पर हँसी का नर्म सा तूफ़ाँ लिये हुआ
पेशानि-ए-ज़मील पे अनवारे-तमकनत
ताबिंदगी-ए-सुबहे-दरख्शाँ लिये हुये
ज़ुल्फ़ों के पेचो-ख़म में बहारें छिपी हुईं
इक कारवाने-निगहते-बुस्ताँ लिये हुये
आ ही गया वो मेरा निगारे-नज़रनवाज़
ज़ुल्मतकदे में शमए-फ़िरोज़ाँ लिये हुये
इक-इक अदा में सैकड़ों पहलू-ए-दिलदही
इक-इक नज़र में पुरसिशे-पिनहाँ लिये हुये
मेरे सवादे-शौक़ का ख़ुरशीदे-नीमशब
अज़्मे-शिकस्ते-माहज़बीनाँ लिये हुये
दर्से-सुकूनो-सब्र ब-ईं-एहतमामे-नाज़
नश्तरज़नीं-ए-जुंबिशे-मिज़गाँ लिये हुये
आँखों से एक रौ से निकलती हुई हर आन
गर्क़ाबि-ए-हयात का सामाँ लिये हुये
मिलती हुई निगाह में बिजली भरी हुई
खिलते हुये लबों में गुलिस्ताँ लिये हुये
ये कौन है ’मजाज़’ से सरगर्मे-गुफ़्तगू
दोनों हथेलियों पे ज़नख़दाँ लिये हुये!
Mirza Ghalib
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nice post.
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Very very nice shayari thanks for sharing I loved it.
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bahut khoob. Sir
Please suggest also on my poetry.
http://helplessminority.com/paigame-muhabbat/
Bahut shandar he, sir g
Very nyc , shandar he
https://www.myhindishayari.in/2019/02/attitude-shero-shayari.html
अब पढ़कर क्या करना जब छोड़ ही दी ।
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Nice Post Boss
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